सुख मिलता है अपनेपन से, भरे हुए परिवार में (गीत )
सुख मिलता है अपनेपन से, भरे हुए परिवार में (गीत )
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सुख मिलता है नहीं स्वर्ग में,, कल्पवृक्ष साकार में
सुख मिलता है अपनेपन से, भरे हुए परिवार में
(1)
छप्पन भोग छतीसों व्यंजन, धरे हुए रह जाते
कोठी-महल-बंगले धन से, भरे हुए रह जाते
खुशियों का संस्पर्श छिपा है, घर-ऑंगन के द्वार में
(2)
ताऊ-ताई चाचा-चाची, बुआ बहन या भाई
ये रिश्ते अनमोल न इनकी, कीमत लगने पाई
दो पैसों के लिए न टूटें, रिश्ते ये तकरार में
(3)
सुख मिलता पति की आँखों में, पत्नी की बॉंहों में
सुख मिलता पोता-पोती की, नन्हीं-सी चाहों में
सुख मिलता दादा-पोते को, देख मनोहर प्यार में
(4)
आलीशान विश्व है इसमें, चाहे जितना घूमो
बनो विश्वविख्यात भले ही, नभ को जो भी चूमो
बिकती है सुख-शांति-चैन कब, दुनिया के बाजार में
सुख मिलता है अपनेपन से, भरे हुए परिवार में
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर
मोबाइल 9997615451