सुख दुख
आईना बन के न मिला करो किसी से
कर्म और धर्म के कर्ता तुम तो नही हो ||
ज्ञान देना सीख देना तो बहुत आसान होगा
निष्कर्ष के फर्ज कहाँ निभा तुम सकोगे ||
वेदना सद्भाव सम्भाव को ये जिन्दगी
कम तो रहेगी ही हमेशा जानते हो तुम ||
इसको कहाँ तक अपने आप से पूरा
कब कर सकोगे पर क्या मानते हो तुम ||
हो सृजन कल्याण कारी कोशिश करी थी
हो गया उल्टा दोष क्या है ? तुम्हारा ||
कर्म के प्रारब्ध का मार्ग अब क्या चुनोगे
समय तो निकलता जा रहा क्या रोक सकोगे ||
आईना बन के न मिला करो किसी से
कर्म और धर्म के कर्ता तुम तो नही हो ||
मासूम सा चेहरा किसी का जब मैं देखता हुँ
मौन को अपने जतन से तब मैं तौलता हुँ ||
अबोधिता मिरी अब काम किसके आयेगी
ज्यादा से ज्यादा जिद करुंगा तो पिस जाएगी ||
अन्याय का दानव मेरी सोच से इतना बड़| है
सोचना भी इस विषय में अरुण कठिन अब लग रहा है ||
आईना बन के न मिला करो किसी से
कर्म और धर्म के कर्ता तुम तो नही हो ||