सुख-दुख
सुख-दुख तो जीवन में,
एक ही सिक्के के दो पहलू,
सुख में इंसान आराम फरमाता,
दुख के पलों को भी है बिसराता।
सुख में प्रभु को भूल ही जाता,
दुख में उसी पर इल्ज़ाम लगता,
सुख हर रिश्ते को मधुर बनाता,
दुख में कोई पास नहीं आता।
सुख जीवन का मधुर स्वप्न सा,
दुख में बस कुछ नहीं है भाता,
जो सुख-दुख में प्रभु की जोत लगता,
वही सुख-दुख को सम है पाता।
हृदय बसा प्रभु का हैं मंदिर,
श्वास-श्वास में उसको जो ध्याता,
जीवन सरल हो जाए उसका,
अंत समय वो भव तर जाता।।
✍स्वरचित
माधुरी शर्मा ‘मधुर’
अंबाला हरियाणा।