*सुख-दुख के दोहे*
सुख-दुख के दोहे
_________________________
1)
सुख-दुख चाहे जो मिला, करो उसे स्वीकार
सदा आत्म-संतोष हो, जीवन का आधार
2)
रहे न कोई कामना, चलो तृप्ति की ओर
मिट जाएगी कालिमा, होगी उजली भोर
3)
मन निर्मल जिसका हुआ, वह ही जीवन-मुक्त
आजीवन भटका मनुज, कुटिल हृदय से युक्त
4)
मॉं के हाथों से मिली, सुत को जो फटकार
समझो जादू की छड़ी, जीवन दिया सॅंवार
5)
जो सोचो जैसा कहो, वैसा हो व्यवहार
यह ही होता सत्यपथ, यही धर्म का सार
6)
अहंकार सबसे बुरा, यही पतन का मूल
अच्छे-अच्छों से हुई, अहंकार की भूल
7)
पहली सीढ़ी प्रेम की, होता घर-परिवार
निराकार तो प्रभु हुए, घर समझो साकार
8)
नारी जग-जननी हुई, नहीं नरक की द्वार
नारी यदि होती नहीं, होता क्या संसार
9)
उपदेशों से क्या हुआ, प्रवचन सब बेकार
अच्छी बातों पर हुए, यदि बस सोच-विचार
10)
पर-हित पर-उपकार है, जीवन का सब सार
सिर्फ स्वार्थ के हित जिए, तो जीवन बेकार
11)
मरते ही तत्काल तो, चढ़ा चित्र पर हार
फिर मुरझाया हार कब, किसने किया विचार
12)
अष्ट सिद्धि नव-निधि सदा, यों तो देती मोद
किस्मत वाला सिर्फ वह, पाई मॉं की गोद
——————————-
रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451