सुख के सब साथी
सुख में सब मिलते हैं, सुख में हर कोई है जानता,
दुख में दूर-दूर भागते फिरे, कोई नहीं पहचानता।
तूती बोलती थी मेरी, सब लोग हूजूम लगाते थे,
मेरे एक इशारे पर वे, मेरे सारे काम कर जाते थे।
मुझे कहाँ कब क्या करना है, दिनचर्या बतलाते थे,
जब तक मैं सोंचूँ तब तक, पूरा भी कर आते थे।
मगर जब से सत्ताविहीन हुए, लोग अंजान हो गए,
शक्ति मेरी क्षीण हुई, जान पहचान सब खो गए।
वक्त की ठोकर ने मुझको, ऐसा दिन दिखलाया है,
समय बड़ा बलवान है, मुझे अब समझ में आया है।
सुख में मदद किया, जिनको वो नज़र तो आते हैं,
पर जब सामना होता है, बगल से निकल जाते हैं।
जिन्हें अपना मानता था, देखकर वो मुस्कुराते हैं,
जो मुझे अपना मानते थे, बस वही साथ निभाते हैं।
सुख के काल को याद करके, मेरी आँखें रोती है,
अपनों की परख तो, विपत्ति समय में ही होती है।
जो गर्व करते अपने रसूखों पर, वे बहुत नादान हैं,
समय के आगे कौन टिका, समय सर्व शक्तिमान है।
?? मधुकर ??
(स्वरचित रचना, सर्वाधिकार©® सुरक्षित)
अनिल प्रसाद सिन्हा ‘मधुकर’
ट्यूब्स कॉलोनी बारीडीह,
जमशेदपुर, झारखण्ड।