सुख की रोटी दाल
आएगा क्या वाकई ,… ऐसा कोई साल !
जनता को जिसमे मिले,सुख की रोटी दाल !!
बीते सत्तर साल से, …ठोक रहे हैं ताल !
मिली कहाँ सबको मगर,सुख की रोटी दाल!!
नजरों मे मेरी मुझे, .लगे वही खुशहाल!
खाये दोनो वक्त जो,सुख की रोटी दाल!!
चाहे धन्ना सेठ हो,…..चाहे हो कंगाल !
मिले किसे इस दौर मे सुख की रोटी दाल!!
सरकारें आई गई, .अब भी खडा सवाल !
मिली कहाँ आवाम को,सुख की रोटी दाल !!
भौतिक सुख की चाह ने,ऐसा किया कमाल !
मिली नही इंसान को,.सुख की रोटी दाल !!
रमेश शर्मा..