सुख की पावन चूल रही
(विधा-बाल गीतिका)
नाना -नानी आनंद मगन, घररूपी बगिया फूल रही |
सब हँसते -गाते प्रीत रंग के सुख की पावन चूल रही |
आजाद हिंद की हर उमंग दिल धक-धक झूला पवन संग |
ऊपर को बढ़ता, लौटा तो, भय-गति पूरी प्रतिकूल रही|
नाना -नानी आनंद मगन,घररूपी बगिया फूल रही|
सब हँसते गाते प्रीति रंग के सुख की पावन चूल रही|
मामा आए, पापा आए, माँ को भी संग-संग लाए|
सद्प्रीति रंग, छाई उमंग ,प्रभु माया भी अनुकूल रही |
नाना-नानी आनंद मगन घररूपी बगिया फूल रही|
सब हँसते-गाते प्रीति रंग के सुख की पावन चूल रही|
नित पाठ राष्ट्रमय ज्ञान हेतु ,औ प्रीतिभाव विज्ञान हेतु|
जीवन उल्लास भरा मधुरिम, उर में आनंदी मूल रही |
नाना-नानी आनंद मगन ,घररूपी बगिया फूल रही|
सब हँसते -गाते प्रीत रंग के सुख की पावन चूल रही|
बृजेश कुमार नायक
‘जागा हिंदुस्तान चाहिए” एवं “क्रौंच सुऋषि आलोक” कृतियों के प्रणेता