सुख की अभिलाषा
“सुख की अभिलाषा”
नर सोच रहा सुख पायेगा
वह समय सुनहरा आएगा ।।२।।
ऋतु होगा मस्त बहारों सा
लहराते सिंधु किनारों सा
झरनों के कल कल कलरव से
आनंद विभोर हो जायेगा
वह समय सुनहरा आयेगा ।।२।।
सब दौड़ रहा सुख के पीछे
एक दूजे की टांगे खींचे
वह सोच रहा जब मैं पीछे
दूजा कैसे बढ़ जाएगा
वह समय सुनहरा आएगा ।।२।।
करता जाता वह घोर पाप
बढ़ता जाता तन कलुष ताप
वह सोच रहा बस यही राह
उसे सुख धाम पहुंचाएगा
वह समय सुनहरा आएगा ।।२।।
चोरी हत्या लूटपाट किया
भाई का हिस्सा काट लिया
वह ठान लिया जग हरने को
फिर उसको कौन हराएगा
वह समय सुनहरा आएगा ।।२।।
मिथ्या का पथ साध लिया
पापों की गांठ बांध लिया
शंभू सुख की अभिलाषा में
जीवन दुख में कट जाएगा
वह समय सुनहरा आएगा ।।२।।
शम्भू प्रजापति “सहयोगी”