#रुबाइयाँ
संग प्रिया चहुँ ओर उजाला , मद वचनों का है प्याला।
दुख-सुख से हम अनजान हुये , लिए हृदय चाहत ज्वाला।।
भार जगत् का भूल गये हैं , प्रेम-सोम-रस पीते हैं;
कल की चिंता न भय आज का , ऐसा है प्रेम निराला।।
जो मस्ती तेरी आँखों में , वो कब देती है हाला।
नशा ज़िंदगी भर ना उतरे , पीकर इनका मृदु प्याला।।
सपने इन आँखों के पलपल , इक उम्मीद जगाते हैं;
पूरे चाहत करवाएगी , ये खोले मुस्तक़बिल ताला।।
चाहत हिम्मत बन जाती है , दूर अँधेरे होते हैं।
सब्र रात भर करने से ही , नये सवेरे होते हैं।।
दूर नहीं है मंज़िल राही , चलता चल छोड़ उदासी;
लहरों से जीत सकें तब , क़दम किनारे होते हैं।।
#आर.एस.’प्रीतम’