सुखांत
जीवन का मध्यांतर
दुखांत चलचित्र की तरह होने के पहले
मैं अपना किरदार बदलना चाह रहा था
रावण से राम बनने राह जुगाड़ रहा था ।
मंदोदरी तैयार नहीं थी
चौदह वर्ष कष्ट उठाने को
सोने की लंका में रह कर
दंडक वन में जाने को ।
भाई विभीषण
अपने किरदार से सुखी था
राम को बहन नहीं थी
अंत: सूपर्णखा दुखी थी ।
और यों आज मैं
रावण का रावण हूँ
राम के हाथों मरकर
सुखांत का कारण हूँ ।