सुखांत।
अच्छी बुरी हर याद को आज,
चलिए तहस-नहस करते हैं,
थोड़ी सी दूरी हर रिश्ते से करके,
नज़रअंदाज़ हर बहस करते हैं,
ना आएं अब यादों में किसी की,
और ना ही किसी को याद करते हैं,
ढूंढ के ख़ुद में कोई अच्छा सा साथी,
एक नई शुरुआत करते हैं,
जो भी था जैसा भी था,
अब हर पल का सुखांत करते हैं,
करें कोशिश की मुंह के साथ “अंबर” ,
अपने मन को भी शांत करते हैं।
कवि-अंबर श्रीवास्तव