सुखराम दास जी के दोहे
वन्दन हरि गुरू ब्रह्म को, कर सुखा बार अनन्त ।
दद् अक्षर होवे पुस्तक में, आप सुधारो सन्त॥1
सन्त बड़े परमार्थी, बिगड़ी देत सुधार।
सुखा चरणा रज होय, वन्दन बारम्बार॥2
हरि वन्दन हर साध को, चरणों में सिर टेक।
सुखराम शिशु दास की, भूली बक्षो अनेक॥3
सुखरामा प्रणामे गुरू, मैं पतीत गुरू पीव।
भव सागर के बीच में, डूबत राख्यो जीव॥4