सुखमय यादें रह पाती क्या ? कविता
कविता
सुखमय यादें रह पाती क्या ?
दुःख की पीड़ा सह जाती क्या ?
जीवन पथ कितने दिन का ?
ओझल होता तिनका-तिनका ;
निर्झर सुख की बरसात गयी ।
लो दिन बीता लो रात गयी ।
यह झूठा दम्भ दिखावा क्यों
यह ईर्ष्या यह निज दावा क्यों
कितने दिन का अभिमान रहा
जग में तो बस सम्मान रहा
वह समय गया, औकात गयी ।
लो दिन बीता लो रात गयी ।
जो सपने थे जिज्ञासा थी
वह जीवन की परिभाषा थी
वो सही ग़लत की दुविधाएँ
छूटी वो वैभव सुबिधायें
उन अफवाहों की बात गयी ।
लो दिन बीता लो रात गयी ।
फिर रूखे अश्रु बहाना क्या ?
ख़ुद से ख़ुद को समझना क्या ?
जो भी उर में वह स्पंदन था
सच है भावों का बंधन था
वादे टूटे सौगात गयी ।
लो दिन बीता लो रात गयी ।
तू कोमल सी, अलवेली थी
वो बचपन की अठखेली थी
अब वृद्धापन की लगी ठेश
जीवन का अंतिम चरण शेष
कल यौवन की बारात गयी ।
लो दिन बीता लो रात गयी ।
✍रकमिश सुल्तानपुरी