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11 Nov 2022 · 1 min read

सुखमय यादें रह पाती क्या ? कविता

कविता

सुखमय यादें रह पाती क्या ?
दुःख की पीड़ा सह जाती क्या ?
जीवन पथ कितने दिन का ?
ओझल होता तिनका-तिनका ;
निर्झर सुख की बरसात गयी ।
लो दिन बीता लो रात गयी ।

यह झूठा दम्भ दिखावा क्यों
यह ईर्ष्या यह निज दावा क्यों
कितने दिन का अभिमान रहा
जग में तो बस सम्मान रहा
वह समय गया, औकात गयी ।
लो दिन बीता लो रात गयी ।

जो सपने थे जिज्ञासा थी
वह जीवन की परिभाषा थी
वो सही ग़लत की दुविधाएँ
छूटी वो वैभव सुबिधायें
उन अफवाहों की बात गयी ।
लो दिन बीता लो रात गयी ।

फिर रूखे अश्रु बहाना क्या ?
ख़ुद से ख़ुद को समझना क्या ?
जो भी उर में वह स्पंदन था
सच है भावों का बंधन था
वादे टूटे सौगात गयी ।
लो दिन बीता लो रात गयी ।

तू कोमल सी, अलवेली थी
वो बचपन की अठखेली थी
अब वृद्धापन की लगी ठेश
जीवन का अंतिम चरण शेष
कल यौवन की बारात गयी ।
लो दिन बीता लो रात गयी ।

✍रकमिश सुल्तानपुरी

Language: Hindi
125 Views
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