सुखदुःख की कहानी
आँखों में उसने तराशी हैं खुशियां ,न ढूँढ़ पाना तो अपनी नाकामी।
ख़ुशी उसने बख्शी है चेहरे पे सबके ,गर दुख ढूँढ़ ले तो है कैसी हैरानी।
जीवन के पथ पर दिन कहाँ एक जैसे,
ऐसे बनी है सुखदुःख की कहानी।
संभल के है रहना बुरे दिनों में अब तो,
कहीं रूठ ना जाये अपनी जवानी।
उसेलोग कहते थे निकम्मा बड़ा है।
ऐसे ही बे फालतू का पड़ा है।
लोगों की बातों ने उसे ऐसा झिंझोरा,
कि उसने है अब काबिल बनने की ठानी।
जीवन के पथ पर दिन कहाँ एक जैसे,
ऐसे बनी है सुखदुःख की कहानी।
वो घर पे बैठे अनेक सपने था बुनता।
कही कहायी बातों को भी था वो सुनता।
कभी कह न पाया वो अपने मन की व्यथा को,
एक कहानी भी थी ऐसी ,जो थी सबको सुनानी।
जीवन के पथ पर दिन कहाँ एक जैसे,
ऐसे बनी है सुखदुःख की कहानी।
उसने है सोचा ये मुझको पता है।
खुशियां आखिर क्यों लापता है।
वैसे तो मुझमे है कितनी अच्छाइयाँ,
मुझको पता है ,क्यों हैं सबको गिनानी।
जीवन के पथ पर दिन कहाँ एक जैसे,
ऐसे बनी है सुखदुःख की कहानी।
-सिद्धार्थ पाण्डेय