सुकून के दो पल
कोई नही जानता,
क्या होते है सुकून के दो पल।
यह सवाल उड़ान
को जीभर जी लेने के बाद ,
दरख्तो की और लौटते
परिंदे से न पूछिये।
न पूछिये उस प्रकाशपुंज से,
जो उजास बिखेरने के बाद डूब जाता है
आसमानी नदी में हर साँझ
पूछिये बहती सरिता से
या भागते समय से,
नही ठहरते किसी के लिए
नही करते किसी का इंतजार।
बिना रुके,बहते है,बहते जाते है
कुछ भी नही रोक पाता इन्हे,
न छवि का मोह न धूप का भय।
प्रकृति ने नही गढ़े अल्पविराम,
अगर गढ़े होते तो प्रकृति ठहर जाती।
शबदकोशो में गति
शब्द न होते रफ्तार जैसे,
विकास और परिवर्तन।
समय न दोडता तो,
बीज ब्रझ यात्रा न करता
न सृष्ठी शून्य से समय तक पहुचती।
समय की रफ्तार,
सृष्ठी को सरीसर्पो से साइवर्ग तक
ले जा रही है।
कोई नही जानता,
गाव,नगर,महानगर
ये रफ्तार रुकेगी कहाँ।।