*सुकुं का झरना*… ( 19 of 25 )
सुकुं का झरना…
तब से गुमसुम मैं रहती हूँ ,
जब से सीखा चहरे पढ़ना ..
सूख गया सारा ही समंदर ,
जब सीखा पानी पर चलना ..
जो भी था सच्चाई से बोला ,
आता कहाँ है किस्से गढना …
कल जैसी बातें लगती है ,
आपकी ऊँगली थामे चलना ,..
जाना था कुछ रुक कर जाते ,
हमको आ जाता तन्हा चलना …
पूछो माली से बहुत दुखद है ,
एक बगिया का जंगल बनना …
हम ही कदम मिला ना पाए,
नामुमकिन था वक्त ठहरना …
ऊँचाई की चाह नहीं है ,
धरती पर हो सुकुं का झरना…
क्षमा उर्मिला