सुकरात के शागिर्द
जब सुकरात को मुर्शीद मान लिए
हम सच कहना कैसे छोड़ेंगे!
अब तो सूली मिले या ज़हर हमें
अंज़ाम से मुंह नहीं मोड़ेंगे!!
हम अपनी बेबाक तक़रीरों और
गुस्ताख़ तहरीरों के ज़रिए!
तुम देख लेना जिल्ले-इलाही का
तिलिस्म हर हाल में तोड़ेंगे!!
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