सुकरात के मुरीद
सुकरात को मुर्शीद मान लिए
हम सच कहना कैसे छोड़ेंगे
अब सूली मिले या ज़हर हमें
अंज़ाम से मुंह नहीं मोड़ेंगे…
(१)
अपनी बेबाक नज़्मों से
अपनी गुस्ताख ग़ज़लों से
देखना जिल्ले-इलाही का
तिलिस्म हर हाल में तोड़ेंगे…
(२)
क़ौम, नस्ल और रंग की
सारी दीवारें लांघ कर
इस देश के नौजवानों को
एक-दूसरे से जोड़ेंगे…
(३)
अब सेफ़्टी ज़ोन से बाहर
होने के हमारे दिन आए
मक़तल से एक हांक देना
हम नंगे पैरों से दौड़ेंगे…
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Shekhar Chandra Mitra
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