सुकमा के नक्सली हमलों में शहीद जवानों को श्रद्धांजलि
ग़ज़ल
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जो फ़नां हो गये देश पर हैं जवां
पल रहे कोख में उनके घर हैं जवां
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जान जाती है है तो जान जाए मेरी
जान देने के अरमां मगर हैं जवां
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इस वतन के लिये एक क्या सौ जनम
अब भी दिल में मेरे सौ समर हैं जवां
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तीरग़ी अब वतन में न रहने दूँ मैं
हौसलों के वो शम्सो कमर हैं जवां
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डर नहीं कश्तियाँ डूब जाएँ भले
उठ रही है दिलों में लहर हैं जवां
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हम गरीबी की चादर न ओढे़ं कभी
अब तिरंगे की वो मालो ज़र हैं जवां
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हम शहादत से पीछे हटें न कभी
जब तलक दहशतों के सफ़र हैं जवां
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जाने दो अब न रोको ए “प्रीतम” मुझे
मंजिलों को च लें रहगुज़र हैं जवां
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—–@ प्रीतम राठौर @—-
श्रावस्ती (उ० प्र०)