सुंदर शरीर का, देखो ये क्या हाल है
दोस्तों,
इस नव वर्ष की पहली ग़ज़ल आपकी मुहब्बत के हवाले,,,!!!
ग़ज़ल
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सुंदर शरीर का, देखो ये क्या हाल है,
हां भाई हां यही तो हमारा कंकाल है।
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दौलत,शोहरत के संसार में भूल गये,
सुंदर काया, मिट्टी की केवल खाल है।
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जल कर कुछ चिताएं राख़ हो गई है,
बची ख़ाल में, फिर भी क्यूँ उबाल है।
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भ्रम है ऊँचे महल सब धरे रह जाऐगें,
तेरा-मेरा सब मोह-माया का जाल है।
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दीवार खड़ी अमीर गरीब की इसां में,
कौन गिराऐ सब मौन यही सवाल है।
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मन ही मन रोते, रखते झुठी मुस्कान,
खिले चेहरे “‘जैदि” भीतर से बेहाल है।
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शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”