*सुंदर लाल इंटर कॉलेज में विद्यार्थी जीवन*
सुंदर लाल इंटर कॉलेज में विद्यार्थी जीवन
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कक्षा 6 से 12 तक मैंने सुंदर लाल इंटर कॉलेज में पढ़ाई की। 1975 में हाई स्कूल की परीक्षा में मुझे 75% से अधिक अंक प्राप्त हुए। ‘प्रथम श्रेणी सम्मान सहित उत्तीर्ण’ मेरी मार्कशीट पर अंकित था। इसका श्रेय न केवल सुंदरलाल इंटर कॉलेज के कक्षा 6 से 10 तक के पढ़ाने वाले अध्यापकों को जाता है, बल्कि जो नींव टैगोर शिशु निकेतन में मेरे गुरुजनों ने डाली; उसका भी बड़ा भारी योगदान था।
शास्त्री जी हमें हिंदी पढ़ाते थे। उनकी योग्यता का क्या कहना ! भारतीय संस्कृति उनके आचार-विचार से साकार झलकती थी।
हाई स्कूल में बायोलॉजी के शिक्षक बृजेश गुप्ता जी थे। उस जमाने में प्रैक्टिकल में मेंढक काटे जाते थे। हमें अच्छा नहीं लगता था। लेकिन कोर्स में था, इसलिए करना पड़ा। ट्रे पर मोम पिघलाकर फिर उसके ऊपर बेहोश मेंढकों को उल्टा लिटा कर उनके चारों हाथ-पैर फैला कर आलपिन से जड़ दिया जाता था। बृजेश जी मनोयोग से न केवल थ्योरी बल्कि प्रैक्टिकल भी बहुत रुचि से कराते थे।
हमारे जमाने में विद्यालय में दो शिक्षक जैन साहब होते थे। श्री ज्ञान चंद्र जैन छोटे जैन साहब के नाम से जाने जाते थे। श्री मदन मोहन जैन बड़े जैन साहब के नाम से प्रसिद्ध थे। बड़े जैन साहब कला के अध्यापक थे। जब हम टैगोर शिशु निकेतन में पढ़ते थे, तब जन्माष्टमी पर लगने वाली झांकी में हम बच्चों का श्रृंगार बड़े जैन साहब ही करते थे।
छोटे जैन साहब विनम्रता और सद्भावों के भंडार थे। कद छोटा था लेकिन व्यक्तित्व बड़ा था। उच्च मूल्यों के सांचे में ढले हुए थे। कक्षा में उन्होंने कोई हल्का मजाक कभी नहीं किया। कक्षा 10 तक जो अध्यापक हमें मिले, सभी हमारे ज्ञानवर्धन में बहुत मूल्यवान सिद्ध हुए।
इंटर में हमारे बायोलॉजी के शिक्षक श्री राजीव चौहान थे। दरअसल हमें इंटर बायोलॉजी में तीन शिक्षक मिले थे। पहले शिक्षक श्री रॉय थे, जो नवयुवक थे। एक वर्ष से कम समय उन्होंने पढ़ाया। उसके बाद श्री चतुर्वेदी जी हमारे बायोलॉजी के शिक्षक बने। उम्र कुछ अधिक थी। गंभीर प्रवृत्ति थी। अच्छा पढ़ाते थे।
तीसरी शिक्षक श्री राजीव चौहान जी हमें प्राप्त हुए। कम समय में ही आपने छात्रों के ऊपर अपनी योग्यता की धाक जमा दी। विषय का अध्ययन करके आप कक्षा में प्रवेश करते थे। परिश्रम और अध्ययन दोनों का साथ निभाते हुए आप अत्यंत श्रेष्ठ शिक्षक सिद्ध हुए। आपका रिटायरमेंट इसी विद्यालय से हुआ। आजकल तिलक कॉलोनी में रहते हैं।
हमारे अंग्रेजी के अध्यापक श्री कंचन जी थे। पूरा नाम तो राधे नारायण कंचन था, लेकिन आर.एन. कंचन के नाम से आप विख्यात हुए। अंग्रेजी पर अच्छा अधिकार था। पढ़ाने का ढंग मधुर था। कभी कोई मजाक अपनी कक्षा में विद्यार्थियों से आपने नहीं किया। गुरु-शिष्य की मर्यादा का पालन करने में आपका विश्वास था। आप आध्यात्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। विद्यालय के सेवाकाल में ही आप ‘रामचंद्र मिशन’ नमक आध्यात्मिक संस्था से जुड़ गए थे। इस संस्था के प्रधान गुरु श्री बाबू जी महाराज आपके निवास पर जब पधारे थे, तो पिताजी के साथ उनके दर्शन करने में भी गया था। पिताजी को अपने रामचंद्र मिशन की मेडिटेशन सिखाई थी। आप इस संस्था में प्रशिक्षित प्रशिक्षक, शिक्षक अथवा गुरु जो भी कहिए भूमिका निभाते थे। रामपुर में लंबे समय तक रामचंद्र मिशन के पर्याय रहे। जीवन में सद्गुणों को धारण करना तथा अंतर्मन से एक शुद्ध व्यक्तित्व के साथ जीवन जीना न केवल आपको प्रिय था अपितु आप दूसरों को भी प्रेरित करते थे। आप निरंतर सेवा कार्य में संलग्न हैं।
सुरेश चंद्र खन्ना जी से हमने केमिस्ट्री पढ़ी थी। केमिस्ट्री के फार्मूले विशेष महत्व रखते थे। आप इतनी सरलता से केमिस्ट्री पढ़ाते थे कि केमिस्ट्री में अच्छे अंक लाना हमारे लिए बाएं हाथ का खेल हो गया। खुशमिजाज रहे। आज भी उम्र का कोई असर आप पर नहीं दिखता।
ए. पी. अग्रवाल साहब अर्थात आनंद प्रकाश अग्रवाल जी से हमने फिजिक्स पढ़ी। विषय के महान ज्ञाता थे। फिजिक्स पढ़ाना आपके लिए ऐसा ही था जैसे कोई पक्षी हवा में उड़ता हो या कोई मछली जल में तैरे। रामपुर में सार्वजनिक जीवन में आप ‘थियोसोफिकल सोसाइटी’ से भी जुड़े रहे। इसकी विभिन्न मीटिंगों में आप हरिओम अग्रवाल जी के निवास पर भी पधारते थे। बाद में जब मेरे घर पर यह मीटिंग होने लगी, तब मेरे निमंत्रण पर आप अनेक बार मीटिंग में पधारे। आपका सात्विक उत्साह आप पर बुढ़ापा नहीं आने देता।
डॉ.चंद्र प्रकाश सक्सेना जी हमारे हिंदी के अध्यापक थे। उन जैसे हिंदी के प्रवक्ता पूरे रामपुर में सिर्फ जैन इंटर कॉलेज में डॉक्टर छोटेलाल शर्मा नागेंद्र ही थे।