सी डी इस विपिन रावत
अगुवा बन कर तुम चले सदा,
हिम्मत हिकमत से साजा थे।
सरदार थे तुम सामन्त थे तुम,
तुम ही सेना के राजा थे।
रावत तेरा अर्थ बड़ा सा था।
हर कदम जीत पर अड़ा सा था।
अनहोनी हाथों छले गए।
रावत क्यों विपिन से चले गए।
जब तू सरहद पर जाता था,
तेरे नाम से अरि थर्राता था।
कहते वीरों को बताऊंगा,
मैं कभी पहली न चलाऊंगा।
पर उधर से यदि आयी कोई,
फिर गिनती नहीं कराऊंगा।
यही सीख में हम सब ढले गए,
रावत क्यों विपिन से चले गए।
असामयिक जाना खला बहुत,
आंखों से आंसू मला बहुत।
हे वीरगती पाने वाले,
फिर लौट के न आने वाले।
श्रद्धांजलि तुम्हें समर्पित है,
अंतिम अभिवादन अर्पित है।
सेनापति दिल से खले गए,
रावत क्यों विपिन से चले गए।
सतीश सृजन, लखनऊ।