सीमा रेखा
स्वार्थ,लोभ की
फसल उग रही
चरनोई की अब धरती पर ।
गैयें भूखीं, क्षुधित बैल हैं,
कुत्तों का भी भोजन छीना ।
पीड़ित हैं बकरियाँ,भेड़ भी,
बिल्ली को आ रहा पसीना ।
लूट-लाट की
बेल चढ़ रही
मड़वे की मैली छतरी पर ।
चूहों की हालत पतली है,
चिड़ियों का दाना ज़हरीला ।
छिपकलियों का दम टूटा है,
गिरगिट रंग छोड़ती पीला ।
जोड़-जाड़ की
सीमा रेखा
ख़त्म हुई जाकर बखरी पर ।
— ईश्वर दयाल गोस्वामी ।