सीमा पर रहते हो पापा माना मुश्किल है घर आना
सीमा पर रहते हो पापा ,माना मुश्किल है अब आना।
कितना याद सभी करते हैं ,चाहूँ मैं बस ये बतलाना
दादी बाबा की आँखों में, पापासूनापन दिखता है।
मम्मी का तकिया भी अक्सर,मुझको गीला ही मिलता है।
देख तुम्हारी तस्वीरों को,अपना दिल बहलाते रहते,
गले मुझे लिपटा लेते ये,जब मैं चाहूँ कुछ समझाना।
कितना याद सभी करते हैं ,चाहूँ मैं बस ये बतलाना।
मेरा तो बचपन ही पापा ,तुमसे ढँग से नहीं मिला है।
मगर गर्व है मुझको तुम पर,कोई मन में नही गिला है।
पर बच्चों के मम्मी पापा, जब टीचर से जाकर मिलते ,
तब मुश्किल हो जाता मेरा ,रोक आँसुओं को यूँ पाना।
कितना याद सभी करते हैं ,चाहूँ मैं बस ये बतलाना।
सीमा पर गोलीबारी की ,जब-जब भी खबरें आती हैं।
चिंता के मारे हम सबकी, साँसें जैसे रुक जाती हैं।
बजे फोन की घंटी जब भी,माँ इतना घबरा जाती है,
गुमसुम सी बैठी रहती वह,भूल गयी खुलकर मुस्काना।
कितना याद सभी करते हैं,चाहूँ मैं बस ये बतलाना।
सपनों में ही मिलकर तुमसे,ख़ुश मैं रोज़ हुआ करती हूँ।
रहें सलामत मेरे पापा, मन में यही दुआ करती हूँ।
अगर हो सके छुट्टी लेकर, दीवाली पर घर आ जाना,
सूनी हम सबकी आँखों में, खुशियों के कुछ दीप जलाना
कितना याद सभी करते हैं,चाहूँ मैं बस ये बतलाना।
डॉ अर्चना गुप्ता
डॉ अर्चना गुप्ता