सीप के मोती
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ज़िन्दगी के इस समंदर में
मुझसे टकरातीं, ये वक़्त की लहरें,
झकझोर देती हैं, मेरी हिम्मत,
तोड़ देती है मेरे साहस को,
फिर भी डूबते हुए उस गहराई में,
अनुभव होती है… मन की शांति,
विचलित मैं, ठहर सा जाता हूँ,
पहुँच कर उस तलहटी में,
जहां तुम मौज़ूद हो सीप बनकर,
समेट लेती हो मुझे अपने अंदर,
ये एहसास दिलाने को, चमकाने को,
करती हो प्रयास अथक,
मुझे मोती सा बनाने को ….
बन जाऊंगा जब, निखर जाऊंगा तब,
बाहर आऊँगा एक नए जीवन के साथ,
मुस्कुराहट है अब, ज़िन्दगी भी नही रोती,
बना दिया है तूने मुझे जो, सीप का मोती …।
©ऋषि सिंह “गूंज”