सीता स्वयंवर
# सीता स्वयंवर #
विवाह योग्य हुई सीता राजा जनक को चिंता सताई थी
सुयोग्य वर चुनने को मुनादी स्वयंवर की कराई थी
दूर दूर से राजे, महाराजे, वीर और पराक्रमी आए थे
घोषणा सुन विश्वामित्र भी राम लखन को लाए थे
महापराक्रमी शिव शंभू का धनुष जो जनक के पास था
स्वयंवर की शर्त यही थी प्रत्यंचा उसपर चढ़ाना था
आमंत्रित सभी वीरों ने सारे प्रयास आजमाए थे
प्रत्यंचा तो दूर रही धनुष हिलाने के पड़ गए लाले थे
विश्वमित्र ने कुमार को, आग्रह जनक का बतलाया
अभेद्य धनुष को देखने राम को, दिया आदेश दोहराया
आज्ञा पाकर ऋषि की आसानी से धनुष उठा लिया
देखते ही देखते कुमार ने प्रत्यंचा धनुष की चढ़ा दिया
खींची जो प्रत्यंचा कान तक धनुष बीच से टूट गया
हुई भीषण गर्जना लगा जैसे वज्रपात कोई हुआ
सभी सभासद और विदेहराज आश्चर्यचकित से बैठे थे
इस अचिंत्य और अतर्कित घटना के साक्षी सभी बने थे
टूटते ही धनुष महादेव का स्वयंवर सीता का संपन्न हुआ
वरण किया सीता ने प्रभु का, चहुँ ओर जय कार हुआ
हुआ विवाह राम संग सीता हुई उर्मिला लक्ष्मण की
बंधी डोर मांडवी भरत की, श्रुतकीर्ति हुई शत्रुधन की
पुत्र वधुओं संग लौटे दशरथ खुशी फिर आई अयोध्या में
हर्ष और उल्लास का मंजर बिखरा हुआ था अयोध्या में
हर्ष और उल्लास का मंजर बिखरा हुआ था अयोध्या में।
इति।
इन्जी संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश