*सीता-स्वयंवर : कुछ दोहे*
सीता-स्वयंवर : कुछ दोहे
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आभूषण-साड़ी पहन, चलीं सिया मृदु चाल
उर में बसते राम थे, हाथों में जयमाल
2
मन ही मन तो कर लिया, वरण सिया ने राम
धनुष-भंग का रह गया, कहने-भर को काम
3
युग-युग से जयमाल की, प्रथा सदा जीवंत
शुभ विवाह में यह प्रथा, समझो सुखद वसंत
4
धनुष तोड़ने को उठे, कब था हर्ष-विषाद
एक भाव मन कर रहा, पाठ राम को याद
5
पुष्प-वाटिका का रहा, सबसे सुंदर काम
मिले जानकी से जहॉं, दशरथनंदन राम
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451