सीता सुकुमारी
युग बीत गए
कलंक बड़ा भारी है।
आज भी सीता सुकुमारी है।
व्यर्थ की जिंदगी छोड़ दें,
अपने को नया मोड़ दें।
स्वंय को बदल डालो अपने- आप से,
डटकर सामना करो ,
अपने आप से,
नैतिकता मूल्य, ह्मास सभी है,
अपने आप से
व्यर्थ की जिदंगी छोड़ दो,अपने को मोड़ दें।
बेटी तो राजकुमारी है।
वो फूल से भी प्यारी हैं।
सभी को सोचती, क्या समाज क्या परिवार
सभी के साथ।
खमोशी आवाज में किरदार
सीता सम्रग में देती हैं विस्तार।
हादसा और स्त्री जीवन,एक हो गये है।
वक्त का बयार (हवा) हैं।
नारी का इतिहास हैं।
नजाकत का भ्रम लेकर
नारी आज भी जीती हैं।
खुद अपमानित होकर,
सम्मानाओं का गुलामी लेकर
विद्रोह करती हैं ,तन-मन वचनों से,
किससे कहें, कैसे कहें
शोषित हैं भाग्य नहीं अधिकार मेरा ।
ममता का स्त्री वरदान लेकर
त्याग का अनमोल उपहार लेकर
अशांति से क्लांत होकर
असीमित सहनशीलता धैर्यता लेकर
भावनाओं का उदगार लेकर।
अपनी मुकाम लेकर चली हैं।
विगत से आज तक खुद अपमानित होकर
सम्मनाओं का गुलामी लेकर ,हर उमंग से टूटी,
आस भरी जीवन जीती हैं।_स्वरचित एवं मौलिक रचना