सीख
सीखता है मनुज
जीवनपर्यन्त।
देह नष्ट हो जाती
मगर सीखना न अन्त
है नहीं ऐसा अगर
तो कहो फिर क्यों
हो जन्म भला ?
आत्मा मरती नहीं पर
देह नष्ट हो जाती
बताओ यह
गूढ़ तत्व कोई
कैसे समझे भला?
जान लो जब
यह गूढ़ तत्व
तो जीवनमृत्यु
फिर क्यों हो भला?
इसलिए तो कहता हूँ
गीतोपदेश फिर दुहराता हूँ
फिर जन्म क्यों ?
मृत्यु फिर भला?
सीखने को ही
मनुज ले रहा बारंबार।
सीखने का न
है कोई आर-पार।।