सीख
ये पापा की परियाँ ऐसा,
कैसे अत्याचार ढाती हैं।
घर छोड़ बिन छुरी कटार,
घरवालों को मार जाती हैं।।
पापा ने था बहोत सिखाया,
हर सीख वो खुद ही बिसारी है।
भूल गयी वो नन्ही चिड़िया,
दाना फेंक के बैठे शिकारी है।।
इज्जत तार तार हो जाता,
हृदय जार जार रो जाता।
मरते लाड़ प्यार से पालक,
निर्दयी यार प्यार हो जाता।।
दो दिन में जो मन मोह गया,
ऐसे हुवा प्यार बचकाने में।
सोच समझ न कर्म करे तो,
बीते उम्र सदा पछताने में।।
इज्जत से जो पली बढ़ी,
वो इज्जत से विदा होती रहे,
अंगना सदा माँ बाप का,
ससुराल से आ सँजोती रहे।।
और बने जिस घर की बहू,
उसकी मर्यादा का ध्यान रहे।
बड़े बुजुर्गों की पद सेवा में,
मिलता आशिष ये ध्यान रहे।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित १७/०७/२०१९ )