सिस्टमी चाल में चलना सीखो (एक व्यंग्य रचना))
सिस्टमी चाल में चलना सीखो
सिस्टम में हो लाख बुराई पर
गुणगान इसका तू करना सीखो
विजय पताका फहराना है तो
सिस्टमी चाल में चलना सीखो।
बात आज की नहीं कह रहा
हर युग में होता आया है यह
बने जो चमचा बेलचा दरबारी
माखन मिश्री खाता रहा है वह
उन्हीं के पद चिन्हों पर चलकर
जीवन को सफल बनाना सीखो
विजय पताका……………..
युद्ध में जीत पक्का करने को
दुर्योधन ने कर्ण को नृप बनाया
देकर अंग देश के राजपाट को
पांडव कुल के सबको चौंकाया
लेकर सीख कुरुक्षेत्र के रण का
खुद को विजयी बनाना सीखो
विजय पताका …… …….
देकर गुप्त रहस्य श्रीराम को
लंका नरेश विभीषण बन जाता
अल्पमत वाले राजनीतिक दल
छल बल से बहुमत पा जाता
तुम भी देकर राज किसी को
लक्ष्य शिखर पर जाना सीखो
विजय पताका ………….
बहुत ऐसे हुए बुद्धिमान विवेकी
चला नहीं जो सिस्टमि मार्ग पर
शत प्रतिशत सही होकर भी
पहुंच पाए नहीं मंजिल द्वार पर
सिस्टम के प्रत्येक कदम से
कदम मिलाकर चलना सीखो।
विजय पताका ……………
सिस्टम के साथ यदि नही चलोगे
आजीवन तुम अपना हाथ मलोगे।
सेटिंग गेटिंग किए बिना सिस्टम में
सफलता द्वार तक जा न सकोगे
सिस्टम में है शुकराना नजराना
इन शब्दों का जाल बिछाना सीखो
विजय पताका……………….