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15 May 2024 · 1 min read

सिसक दिल कीं …

कुछ हद तक समझ आई,

तेरी नराजगियों की कहानी,

क्या करे हम जो अडे हैं

बदलती नही है आदते ,

जो बरसो की है …

तुमने तो कहा था,

कुछ तुम बदलो ,

कुछ बदलेंगे हम लेकिन,

अडी है अहम की लकीरे ,

जो मिटती नही है …

मिलावट शायद खून में ही है,

दोष हम नही देते किसी को ,

अब क्या कहे,

नसीब में था जो लिखा,

मर्जी तो भगवान की ही है …

छोड के जाओगे तो क्या सहलोगे ,

टूटे दिल की तड़पन को ,

साथ में बंधा है वो फरिश्ता ,

जिसके लिये जिंदगी से भी ,

रुसवा होना नही है…

शोर तो कुछ देर होगा,

फिर से खामोशियाँ ही जीतेगी ,

संभल सको इस दौर से तो ,

सोच लेना अब ,

इनसे परहेज करना नही है…

समझ तो होगी ना तुममें ,

जो मैंने कहाँ उसे पढ सको,

कविता औरो के लिये होगी,

हमने तो सिसक ,

दिल की लिखी है …

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