सिसक दिल कीं …
कुछ हद तक समझ आई,
तेरी नराजगियों की कहानी,
क्या करे हम जो अडे हैं
बदलती नही है आदते ,
जो बरसो की है …
तुमने तो कहा था,
कुछ तुम बदलो ,
कुछ बदलेंगे हम लेकिन,
अडी है अहम की लकीरे ,
जो मिटती नही है …
मिलावट शायद खून में ही है,
दोष हम नही देते किसी को ,
अब क्या कहे,
नसीब में था जो लिखा,
मर्जी तो भगवान की ही है …
छोड के जाओगे तो क्या सहलोगे ,
टूटे दिल की तड़पन को ,
साथ में बंधा है वो फरिश्ता ,
जिसके लिये जिंदगी से भी ,
रुसवा होना नही है…
शोर तो कुछ देर होगा,
फिर से खामोशियाँ ही जीतेगी ,
संभल सको इस दौर से तो ,
सोच लेना अब ,
इनसे परहेज करना नही है…
समझ तो होगी ना तुममें ,
जो मैंने कहाँ उसे पढ सको,
कविता औरो के लिये होगी,
हमने तो सिसक ,
दिल की लिखी है …