“सिसकती पशुता”
“सिसकती पशुता”
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मधुर वचन से आच्छादित नर
नाग सरीखे डँसते हैं
मौका परस्त घात लगाएँ
घर में गिरगिट पलते हैं।
ताक लगाए बैठे छिप कर
आतंकी का साथ धरें
दानवता का चोला पहने
ज़ेहादी ये बात करें।
देख मनुज को गुण धर अपने
पशु विनय प्रभू से करते
त्राण करो दर शीश झकाते
इंसानों से हम डरते।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”