सिसकता लोकतंत्र
मैंने लोकतंत्र को
छुप छुप आंसू
बहाते देखा है!
सिसकते देखा
बिलखते देखा
चिंघाड़ते-भागते देखा
कराल काल बनते देखा
सोते हुये भी देखा
और रोते हुये भी देखा
हाँ मैंने लोकतंत्र को
छुप छुप आंसू
बहाते देखा है!
वोट माँगते वादा करते
दर-दर जाता नेता देखा
आम आदमी के सीने में
पलती उम्मीदों को देखा
उसके ही सीने में फटती
बारूदी सुरंगों को देखा
कसमसाती आँखों में
टूटते स्वप्न को भी देखा
हाँ मैंने लोकतंत्र को
छुप छुप आंसू
बहाते देखा है!
वनों में लगती आग को देखा
जानवरों को भागते देखा
उजड़ते बसेरे को देखा
काबिज होती खाऊ-उजाड़ू
मशीनी व्यवस्था को,
किसानों की हालत पर..
खिलखिलाकर हँसते देखा
हाँ मैंने लोकतंत्र को
छुप छुप आंसू
बहाते देखा है!
(अनवरत जारी..)
कवि _ करन मीना केसरा, व्याख्याता (हिन्दी)