सिलसिले प्यार के
**सिलसले प्यार के**
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सिलसिले हुए प्यार के
प्यार में एतबार के
आँखें दो से चार हों
आ गए दिन बहार के
अकेलापन भा जाए
द्वार बन्द बाजार के
चक्र जब काटने लगे
भूखे हो दीदार के
दीवानगी छायी हो
काबिल ना घरबार के
बीच भंवर भंस गए
नाव बिन पतवार के
रक्तवाहिनी तेज हो
लहरें जैसे ज्वार के
प्रेम रोग होने लगे
फूल खिले गुलनार के
मनसीरत ना कार का
वो दिन हैं गुलजार के
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)