सिलसिला
क्या उम्मीद करूँ ऐ जिंदगी तूझे से
सांसों में बाँट रखी है ये जिंदगी
कब तलक आबाद रहेगी ये जिंदगी
न मुझे पता न उसे पता
जब तलक मोहब्बत है तुझसे
रख अपना बना के तू
ये जिन्दगी तो चलती रहेगी मगर
एक सिलसिला रह जाएगा
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल