सिलसिला चलने दो अब यूँ ही बात का
सिलसिला चलने दो अब यूँ ही बात का।
कुछ भरोसा नहीं है मुलाकात का।।
बिखरी जुल्फें ये टूटी हुई चूड़ियां।
सब फसाना सुनाती रहीं रात का।।
देखिए दिल है नाजुक हमारा सनम।
टूट जाये खिलौना न जज्बात का।।
राह तकती है वसुधा भी दुल्हन बनी।
आज तो चाँद तारों की बारात का।।
बाग उजड़े लगाना तो आसान है।
लगना मुश्किल है टूटे सुमन पात का।।
शिक्षा के साथ संस्कार इतने रहें।
शव मिले अब न कचरे में नवजात का।।
कुर्सियों में जो रिश्वत की दीमक लगी।
क्या करें आम जनता के हालात का।।
ज्योति तपती धरा सा जले मन मेरा।
अब तलक आया मौसम न बरसात का।।