करें जो मातु चिंतन उन्हीं पर मातु मरती है।
मंच को नमन!
मां शारदे के चरणों समर्पित
विधाता छंद ?
(१)
करे मन से समर्पण जो सभी कुछ वार देती है।
शरण में जो जभी आया उसे संस्कार देती है।
लिखें जब भी शरण लेकर लिखे को सार देती है।
लगाकर कंठ से अपने सभी को प्यार देती है।।
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(२)
अहं का बीज जो बोये उसे फटकार देती है।
उड़े बनकर हवा कोई उसे वो भार देती है।।
नहीं वो रुष्ट होती है सभी को तार देती है।
भॅवर में हो अगर कश्ती उसे पतवार देती है।।
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(३)
जगत जननी वो जगदम्बे जगत उद्धार करती है।
विधा से रंक जो होते उन्हीं के अंक भरती है।
विपद में जो घिरे रहते उन्हीं के कष्ट हरती है।
करें जो मातु का चिंतन उन्हीं पर मातु मरती है।।
?अटल मुरादाबादी ?