*सिर का है मान पिताजी*
सिर का है मान पिताजी
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सिर का है मान पिताजी,
बेटे का अभिमान पिताजी।
पथ प्रदर्शक भो बन जाता,
सारे जग का ज्ञान पिताजी।
गृह गृहस्थी का बोझ ढोता,
परिश्रम की खान पिताजी।
कोई ना समझे व्यथा दशा,
सहनशील इंसान पिताजी।
कैसा भी हो घर का मौसम,
सब का रखे ध्यान पिताजी।
घर की खुशियों की खातिर,
वार देता जी जान पिताजी।
सुख सुविधाए घर में आएं,
आंगन की है शान पिताजी।
हरपल हरदम जूझता रहता,
रण का है सुल्तान पिताजी।
देख कर तेरी ये दरियादिली,
हो जाऊं मै कुर्बान पिताजी।
मनसीरत मन प्रफुल्लित हो,
महादानी महादान पिताजी।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)