सिर्फ़ दुपहरी का विश्राम
दिन बीत गया,
गुजर गई रात,
भूल गये भला जबसे,
दोपहरी सा विश्राम,
.
हलधर छोड़ बैल,
वो पेड़ की छाँव,
बैल जुगाली करते,
कृषक करें विश्राम,
.
ढलती दुपहरी
संध्या सा आगाज़,
जोड़ बैल फिर हलधर,
जैसे नापे जैसे मील,
.
गई जमीन मरा जमीर,
चढ़ गई फ्लैट की बेल,
कट गये पेड़ उजड़े खेत,
मोर पपीहा भूले गीत,
.
गोपाल रहे नहीं,
हुई हंडेरू गाय,
कुऐं तालाब बावडी,
जस् शेष बस अवशेष,
.
दोफ़र गया गया विश्राम,
लोफर हुआ इंसान,
घर घर हुई तालाबंदी,
छाई विकट आर्थिक मंदी,
.
दुपहरी का विश्राम सीख लो,
लौट आयेगी चांदी,
सिर्फ़ दोपहरी आना जाना टाल़ो,
सब ओर होगी खुशहाली.
.
सिर्फ़ दुपहरी का विश्राम,
चित्त में चैन मन चंगा,
शरीर बने ऊर्जावान,
सब ओर बढ़े शान,
.
वैद्य महेन्द्र सिंह हंस