सिर्फ टी डी एस काट के!
वह आईना ली थी बदल, कमजर्फ बरबस छाँट के।
फिर भी रही बिगड़ी शकल, सिर्फ टी डी एस काट के।।
चैन लूट गया सूद बन, दिखे मूल बहते आँसुओं में।
बचा वज़ूद न जाऐ पिघल, सिर्फ टी डी एस काट के।।
मिन्नते बेमोल लगती, लगे सारे वादे तुझे कर्ज़ सी।
अब फेर भी दे मेरा असल, सिर्फ टी डी एस काट के।।
है हवाई किले केवल, या सुस्वप्न ये खुली आंखों का।
बनते रेत से कैसे महल, सिर्फ टी डी एस काट के।।
अब आरज़ू न शेष कोई, न ख्वाहिशें कुछ बाकी रही।
लगी है ठिकाने पर अकल, सिर्फ टी डी एस काट के।।
आशिकी का भुगतान क्यों, ऐसे एक तरफा ही रहे।
मिल दोनों जब करते पहल, सिर्फ टी डी एस काट के।।
इस टूटते दिल में सुकूँ का, गर हो सके भरपाई तो।
तू उस पर कर देना अमल, सिर्फ टी डी एस काट के।।
यूँ ही दिल मिलते नहीं, किसी बनावटी उसूलों से।
लौटाना जो न पाए सम्भल, सिर्फ टी डी एस काट के।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित १२/१२/२०२२)