सिर्फ चार आना।
सिर्फ चार आना
बूढ़े पिता ने खांसते हुए कहा,
क्या था वो हमारा ज़माना।
तीज त्योहार की हर खुशी,
मिलती थी सिर्फ चार आना।।
एक कमाता था दस खाते थे,
फिर भी न घबराते थे।
आज दस कमाते हैं,
फिर भी फाका कर जाते हैं।
हज़ारों रोज़ कमा कर फिर हाल बेहाल,
क्या था वो हमारा ज़माना,
जब रोज़ कमाते थे सिर्फ चार आना।।
पत्नी मायके जाए या बहन घर आये,
जन्मदिन या शादी में जाना।
शगुन या उपहार देना,
सब काम चलाता था सिर्फ चार आना।।
फिर पिता ने गंभीर हो कहा,
आज सब कुछ बदल गया है।
हाथ से रेत की तरह,
समय निकल गया है।।
गुज़र गया वो हमारा ज़माना,
न जाने कहाँ खो गया वो सिर्फ चार आना।।
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