सिर्फ़ तुम
सिर्फ तुम……
चंद ख्वाबों में सिमटा मेरा विस्तार हो तुम…
मेरे जीवन के पतझड़ का गुलजार हो तुम….
मेरी ही परछाई में मिलता है अक़्स तुम्हारा,
जुगनू जिसको दूर करे वो अंधकार हो तुम…
दिल से सन्नाटे आबाद रहते हैं तेरी यादों से,
सूने कोनो में गूंजे वो प्यार की पुकार हो तुम…
आंचल में बिखरी खुशियों का हो एक ठिकाना,
चटक रंगों से खिला इन्द्रधनुष साकार हो तुम…
अरमान छुपाए दिल में पलकों का पर्दा किए,
महकती सांसों में बसा एक नया संसार हो तुम…
हर रोज रंग बदलते रिश्तों के इस मौसम में,
विश्वासों की झलक लिए मेरे पहरेदार हो तुम…
सुशील कुमार सिहाग “रानू”
चारणवासी, नोहर, हनुमानगढ़, राजस्थान.