सियासत
ना पूछ कैसी हिमाकत पे उतर आये हैं।
जो चंद लोग सियासत पे उतर आये हैं।
तुम्हारे शहर का मौसम सियासी लगता है।
देख काफ़िर भी इबादत पे उतर आये हैं।
परखना था तो परखते जो दुश्मनी में थे।
अब तो हम यार मोहब्बत पे उतर आये हैं।
हमको धमकाने की नाकाम कोशिशें ना करो।
अब मेरे दोस्त हिफाज़त पे उतर आये हैं।
शहर में दहशतों का मंज़र है।
जब से कुछ लोग शराफ़त पे उतर आये हैं।
© आलोचक