सियासत
नयन में अश्क घड़ियाली, कुटिल मुस्कान होता है।
वही नेता है जिसका वोट पर बस ध्यान होता है।
नहीं चर्चा कभी होती कहीं, बेरोजगारी की,
जहाँ हक माँगते हैं लोग, खालिस्तान होता है।
लड़ाकर मार देते चैन से जीने नहीं देते,
सियासत का न कोई धर्म, दीन, ईमान होता है।
यहाँ बेदाग जो होगा, सियासत कर नहीं सकता,
सियासतदां शराफ़त से सदा अनजान होता है।
सदा नफरत सिखाते हैं, जहर का बीज बो-बो कर,
जहाँ होती सियासत आम जन हलकान होता है।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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