सियासत में लपकने को नया सामान आया है
सभी चिल्ला रहे लगता, कहीं पर श्वान आया है।
न जाने आज मुर्दों में, कहाँ से जान आया है।
नजर गिद्धों की रहती लास पर, दावत उड़ाने को,
सियासत में लपकने को नया सामान आया है।
सन्तोष कुमार विश्वकर्मा सूर्य
सभी चिल्ला रहे लगता, कहीं पर श्वान आया है।
न जाने आज मुर्दों में, कहाँ से जान आया है।
नजर गिद्धों की रहती लास पर, दावत उड़ाने को,
सियासत में लपकने को नया सामान आया है।
सन्तोष कुमार विश्वकर्मा सूर्य