सियासत आसान हो गयी है
छोटे हाथ जोड़कर जब तू मुझे प्रणाम करता है,
मेरे भाई मुझे लगता है तू चुनाव प्रचार करता है।।
खैर ठीक है बेगारी से तो अच्छा काम करता है।
मगर क्या झूठे वायदे भी तमाम करता है..?
तेरे चेहरे की मुस्कान पर मुझे न जाने क्यूँ शक है,
पर्दानशीं होकर जरूर तू कोई गलत काम करता है।।
तेरे चेहरे की चमक और आवाज़ में जोर इतना क्यूँ है.?
सच्चा फ़कीर तो गूंगा होकर भी ज़ुबान पर राज करता है।।
ये जिंदाबाद ये जिंदाबाद किसलिए और क्यों है.?
तुझे क्या मरने का खौफ़ हरवक्त परेशान करता है।।
तू चल कर आया है गाँव-गाँव, गली-गली,शहर-शहर,
फिर भी तेरा सफ़ेद कुर्ता बेदाग कैसे रहता है.?
ये दुनियां दिन और रात से चलती है, समझता हूँ,
मगर घरों में आग लगाकर तू बुझाने का दावा कैसे करता है..?
बड़ा आसान हुनर है लगाना आग रिश्तों में मेरे भाई,
आग बुझाना सीखने में पूरा जीवन गुजर जाता है।।
सियासत समझते हो जिसे तुम मेरे भाई,
उससे सियासतदां नही हैवान बनता है।।
तवायफ़ के घर का पानी भी अमृत होता है,
हैवान के हाथों का छुआ अमृत भी जहर बनता है।।
सियासत खेल नही है जैसे सतरंज की चाल,
इसे दिल में रखकर ही इंसान मसीहा बनता है।।
सियासत जंग है अंधेरे और उजाले की,
बलिदान देकर उजाला मजलूमों की आँखें बनता है।।