सियासतदार
**सियासतदार**
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राजनीतिक सियासतदार
क्यों नहीं समझते
आम जन की भाषा
और संविधान की सही परिभाषा
अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकते-सेकते
बुझा देते हैं असंख्यों के घर के चुल्हें
और ठण्डी कर देते हैं गर्म राख
फैला कर देश-प्रदेश में
संप्रदायिक और जाति आधारित दंगें
भड़का देते है मन अंदरज्वाला
वैर,द्वेष,विरोध-क्रोध की
तोड़ देते हैं मर्यादाएं और सीमाएं
सदियों और पीढ़ियों से चले आ रहे प्रेम प्यार
और………..
भाईचारे,बंधुत्व और सौहार्द की भावना
उजाड़ देते हैं बसे बसाये घर
निगलते हैं चढ़ती हुई जवानियाँ
रोती बिलखती रहती है मर्दानियाँ
छीनते हैं बेसहारों के सहारे
पर्दे के पीछे खेलते खेल जहरीले
लेकिन जब आमजन जाएगा जाग
निकाल देगा खारे पानी में से झाग
हिला देगा सियासतदारों का सिंहासन
बिछा देगा फर्श पर उनका आसन
मिटा देगा फैला हुआ घना अंधेरा
संप्रदायिकता, जातिवाद और अश्पृश्यता का
फैला देगा हिम सा श्वेत उजियारा
शान्ति, भाईचारे,बंधुत्व और सोहार्द का
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)