सितम देखते हैं by Vinit Singh Shayar
आइने में हम अपना ग़म देखते हैं
उन्हें आज कल बहुत कम देखते हैं
हाथ रखते हैं गैरों के कंधे पर जब वो
हाथ को सर पे रख के सितम देखते हैं
हर महीने मनाते हैं वो बर्थ डे और
अपनी शादी में भी हम मातम देखते हैं
मजबूरी को दे कर मोहब्बत का नाम
अपनी दुल्हन में अपना सनम देखते हैं
हिजरत ने मारा किस क़दर ये ना पूछो
को को कोला में भी अब तो रम देखते हैं
~विनीत सिंह
Vinit Singh Shayar