सिखाए कोरोना
सिखाए कोरोना
सपनों में भी अब डराए कोरोना,
जीवन को पल पल हराए कोरोना |
अपनों से अपने शिकायत थे करते,
बिछड़े थे अपने मिलाए कोरोना |
अब भी है इंसान हाथों में उसके,
जीना है कैसे सिखाए कोरोना |
मिलते हैं अपने कहाँ बाज़ारों में,
रिश्तों की क़ीमत बताए कोरोना |
धरती को देखो किया कितना मैला,
अब तो है खुद ही बचाए कोरोना |
आहट को समझो अभी तो हे प्यारे,
जीवन की राहें सुझाए कोरोना |
हस्ती है तेरी जहाँ में क्या यारा,
क्षण भर में सबको मिटाए कोरोना |
हरि सुमिरन कर मिलेगी वो मंज़िल,
वो ही ज़ब चाहे मिटाए कोरोना |
स्वरचित एवं मौलिक : राम किशोर ” राम
शहर – पठानकोट, पंजाब |